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बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़ | शाही शायरी
baadal hai aur phul khile hain sabhi taraf

ग़ज़ल

बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़

बासिर सुल्तान काज़मी

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बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़
कहता है दिल कि आज निकल जा किसी तरफ़

तेवर बहुत ख़राब थे सुनते हैं कल तिरे
अच्छा हुआ कि हम ने न देखा तिरी तरफ़

जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
बस आज आने वाले थे हम आप की तरफ़

ऐ दिल ये धड़कनें तिरी मामूल की नहीं
लगता है आ रहा है वो फ़ित्ना इसी तरफ़

ख़ुश था कि चार नेकियाँ हैं जम्अ उस के पास
निकले गुनाह बीसियों उल्टा मिरी तरफ़

'बासिर' अदू से हम तो यूँही बद-गुमाँ रहे
था उन का इल्तिफ़ात किसी और ही तरफ़