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बा-हमा यूरिश-ए-आलाम-ओ-सितम ज़िंदा हूँ मैं | शाही शायरी
ba-hama yurish-e-alam-o-sitam zinda hun main

ग़ज़ल

बा-हमा यूरिश-ए-आलाम-ओ-सितम ज़िंदा हूँ मैं

ख़ावर रिज़वी

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बा-हमा यूरिश-ए-आलाम-ओ-सितम ज़िंदा हूँ मैं
मुसहफ़-ए-वक़्त का इक बाब-ए-दरख़्शंदा हूँ मैं

मेरे सीने में धड़कता है दिल-ए-अस्र-ए-रवाँ
इस ज़माने का मुफ़स्सिर हूँ नुमाइंदा हूँ मैं

मैं कि हक़ था हुआ हर दौर में मस्लूब मगर
कल भी पाइंदा था मैं आज भी पाइंदा हूँ मैं

तू तमन्नाई है इक जन्नत-ए-मौऊदा का
अपनी गुम की हुई फ़िरदौस का जोइंदा हूँ मैं

मेरे ज़ख़्मों से हुवैदा है हिना-बंदी-ए-गुल
इक नवेद-ए-चमन-आराई-ए-आइन्दा हूँ मैं

मदह-ख़्वान-ए-शब-ए-तारीक मुझे क्या समझे
सुब्ह-ए-गुल-रेज़ के नग़्मों का नवीसंदा हूँ मैं

ये जहाँ कैसे फ़रामोश करेगा मुझ को
इस के अफ़्लाक का इक 'ख़ावर'-ए-ताबिंदा हूँ मैं