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ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ | शाही शायरी
ba-zahir yun to main simTa hua hun

ग़ज़ल

ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ

ज़फ़र ताबिश

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ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ
अगर सोचो तो फिर बिखरा हुआ हूँ

मुझे देखो तसव्वुर की नज़र से
तुम्हारी ज़ात में उतरा हुआ हूँ

सुना दे फिर कोई झूटी कहानी
मैं पिछली रात का जागा हुआ हूँ

कभी बहता हुआ दरिया कभी मैं
सुलगती रेत का सहरा हुआ हूँ

जब अपनी उम्र के लोगों में बैठूँ
ये लगता है कि मैं बूढ़ा हुआ हूँ

कहाँ ले जाएगी 'ताबिश' न जाने
हवा के दोश पर ठहरा हुआ हूँ