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ब-ज़ाहिर ये जो बेगाने बहुत हैं | शाही शायरी
ba-zahir ye jo begane bahut hain

ग़ज़ल

ब-ज़ाहिर ये जो बेगाने बहुत हैं

परवीन फ़ना सय्यद

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ब-ज़ाहिर ये जो बेगाने बहुत हैं
हमारे जाने-पहचाने बहुत हैं

ख़िरद-मंदो मुबारक अज़्म-ए-अफ़्लाक
ज़मीं पर चंद दीवाने बहुत हैं

शबिस्तानों से तुम निकलो तो देखो
भरे शहरों में वीराने बहुत हैं

तुम्हारा मय-कदा तुम को मुबारक
हमें यादों के पैमाने बहुत हैं

गिला क्या ग़ैर की बेगानगी का
कि जो अपने हैं बेगाने बहुत हैं

निज़ाम-ए-ज़ीस्त का मेहवर मोहब्बत
हक़ीक़त एक अफ़्साने बहुत हैं