EN اردو
ब-ज़ाहिर जो नज़र आते हो तुम मसरूर ऐसा कैसे करते हो | शाही शायरी
ba-zahir jo nazar aate ho tum masrur aisa kaise karte ho

ग़ज़ल

ब-ज़ाहिर जो नज़र आते हो तुम मसरूर ऐसा कैसे करते हो

सिराज अजमली

;

ब-ज़ाहिर जो नज़र आते हो तुम मसरूर ऐसा कैसे करते हो
बताना तो सही वीरानी-ए-दिल का नज़ारा कैसे करते हो

तुम्हारी इक अदा तो वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है जान-ए-मन
मैं शश्दर हूँ कि उस को प्यार इतना बे-तहाशा कैसे करते हो

सुना है लोग दरिया बंद कर लेते हैं कूज़े में हुनर है ये
मगर तुम मुंसिफ़ी से ये कहो क़तरे को दजला कैसे करते हो

हमारी बात पर वो कान धरता ही नहीं है टाल जाता है
तुम्हें क्या क्या नहीं हासिल कहो अर्ज़-ए-तमन्ना कैसे करते हो

तअज्जुब है तअल्लुक़ याद रखना और फिर आराम से सोना
अगर उस को भुला पाए नहीं अब तक सवेरा कैसे करते हो

तुम्हारी आह का ये कौन सा अंदाज़ है वाज़ेह नहीं होता
मुअम्मा ये नहीं खुलता कि तुम दरिया को सहरा कैसे करते हो