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ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना | शाही शायरी
ba-rang-e-nikhat-e-gul hai chaman mein aashiyan apna

ग़ज़ल

ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना

क़ैसर उमराव तोवी

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ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना
किसी के राज़दाँ हम हैं न कोई राज़-दाँ अपना

चले तो जा रहे हैं क्या बताएँ कल कहाँ होंगे
ख़ुदा मा'लूम किस मंज़िल पे ठहरे कारवाँ अपना

यही अच्छा हुआ महफ़िल में तेरी चुप रहे वर्ना
ग़म-ए-दिल की कहानी और फिर तर्ज़-ए-बयाँ अपना

सुपुर्द-ए-इश्क़ हम तो कर चुके सर्माया-ए-हस्ती
जो अहल-ए-होश हैं सोचा करें सूद-ओ-ज़ियाँ अपना

हुआ ही चाहती है शाम भी अब सुब्ह पीरी की
मगर अब तक तो है पहलू में 'क़ैसर' दिल जवाँ अपना