ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मोहब्बत का कारोबार चले
मज़ा तो जब है कि हर लम्हा ज़िक्र-ए-यार चले
तिरी निगाह के जब अहल-ए-दिल पे वार चले
ख़िज़ाँ-नसीब चमन जानिब-ए-बहार चले
उतर न जाए कहीं तेरे हुस्न की रंगत
कि तेरी बज़्म से अब तेरे जाँ-निसार चले
जो आ गई कभी सर देने की घड़ी ऐ दोस्त
ख़ुशी ख़ुशी तिरे दीवाने सू-ए-दार चले
उदास देख के माहौल-ए-मय-कदा साक़ी
नियाज़-मंद-ए-वफ़ा आज सोगवार चले
मआल-ए-लज़्ज़त-ए-शौक़-ए-विसाल की सौगंद
क़रार माँगने आए थे बे-क़रार चले
ख़याल-ए-बादा-कशी आ गया जो ऐ 'मैकश'
अदब से जानिब-ए-मय-ख़ाना बादा-ख़्वार चले
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मोहब्बत का कारोबार चले
मैकश नागपुरी