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ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ तार तार भी न किया | शाही शायरी
ba-qadr-e-josh-e-junun tar tar bhi na kiya

ग़ज़ल

ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ तार तार भी न किया

क़ाबिल अजमेरी

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ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ तार तार भी न किया
वो पैरहन जिसे नज़र-ए-बहार भी न किया

कोई जवाब है इस तर्ज़-ए-दिल-रुबाई का
सुकूँ भी लूट लिया बे-क़रार भी न किया

दिल-ए-ख़राब सर-ए-कू-ए-यार ले आया
ख़याल-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार भी न किया

गुज़र गया यूँही चुप-चाप कारवान-ए-बहार
नवेद-ए-गुल भी न दी दिल-फ़िगार भी न किया

ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब और क्या करते
जिगर पे ज़ख़्म भी खाए शुमार भी न किया