ब-चमन अब वो किया चाहे है मय-नोश गुज़ार
जल्द ऐ पैक-ए-सबा गुल के ये कर गोश-गुज़ार
नहीं मा'लूम कहाँ जाते हैं जूँ नश्शा-ए-मय
जिधर इन रोज़ों में हम करते हैं मदहोश गुज़ार
बज़्म में मुझ को जो देखा तो ये झुँझला के कहा
ऐसी महफ़िल में करे है मिरी पा-पोश गुज़ार
सर-निगूँ कूचा-ए-रुस्वाई में हैं आज तलक
सौ ख़राबी से जो इस दर पे किया दोश गुज़ार
आशिक़ उस पर्दा-नशीं के हैं कि गर सामने से
कभी गुज़रे है तो करता है वो रू-पोश गुज़ार
चंद रोज़ा है ये मय-ख़ाना-ए-हस्ती याँ तो
उम्र ग़फ़लत में न ऐ बे-ख़िरद-ओ-होश गुज़ार
आ फँसा इश्वा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा में यूँ दिल
रहज़नों में करे जूँ राह-फ़रामोश गुज़ार
हम-सफ़र हैं तो ये हसरत है कि कीजे कोसों
इक सवारी में हुए उस से हम-आग़ोश गुज़ार
क़द्र-दाँ कोई सुख़न का न रहा ऐ 'जुरअत'
कुंज-ए-तन्हाई में औक़ात तू ख़ामोश गुज़ार
ग़ज़ल
ब-चमन अब वो किया चाहे है मय-नोश गुज़ार
जुरअत क़लंदर बख़्श