EN اردو
अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे | शाही शायरी
aziz itna tera rang-o-bu lage hai mujhe

ग़ज़ल

अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे

रिज़वानुर्रज़ा रिज़वान

;

अज़ीज़ इतना तिरा रंग-ओ-बू लगे है मुझे
कोई क़रीब से गुज़रे तो तू लगे है मुझे

सफ़र ख़याल का मैं किस तरह तमाम करूँ
तिरी हर एक अदा चार-सू लगे है मुझे

ज़रूर कोई अजब शय है तुझ में पोशीदा
कि तेरा ज़िक्र भी अब कू-ब-कू लगे है मुझे

मैं आसमान की जानिब भी देखता हूँ मगर
जो मेरा चाँद है वो ख़ूब-रू लगे है मुझे

मैं अपनी ज़ात में तुझ को तलाश करता हूँ
बहुत ही सहल तिरी जुस्तुजू लगे है मुझे

है ये भी एक फ़ुसून-ए-निगाह ऐ 'रिज़वान'
नहीं वो पास मगर रू-ब-रू लगे है मुझे