अज़ल से ता-ब-अबद एक ही कहानी है
इसी से हम को नई दास्ताँ बनानी है
उजड़ तो सकता है लेकिन बदल नहीं सकता
वो हक़-शनास जो इक अहद की निशानी है
ख़िरद की बातें कहाँ तक करोगे दीवानो
ख़िरद के नाम पे कुछ ख़ाक भी उड़ानी है
तुम्हारे रंग-ए-जफ़ा को भी है क़याम कहीं
हमारे इश्क़ की मंज़िल तो कामरानी है
फ़क़त समझने के अंदाज़ हैं क़दीम ओ जदीद
फ़साना-गो के तो लब पर वही कहानी है
हयात लाख हो फ़ानी मगर ये सुन रखिए
हयात से जो है मक़्सूद ग़ैर-फ़ानी है
सुनी-सुनाई पे तरजीह लाख बार उस को
किताब-ए-दिल की 'रज़ा' बात आसमानी है
ग़ज़ल
अज़ल से ता-ब-अबद एक ही कहानी है
कालीदास गुप्ता रज़ा