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अज़ाब-ए-हिज्र से अंजान थोड़ी होता है | शाही शायरी
azab-e-hijr se anjaan thoDi hota hai

ग़ज़ल

अज़ाब-ए-हिज्र से अंजान थोड़ी होता है

नाहीद विर्क

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अज़ाब-ए-हिज्र से अंजान थोड़ी होता है
ये दिल अब इतना भी नादान थोड़ी होता है

ये ज़िंदगी है बहुत कुछ यहाँ पे मुमकिन है
कि कुछ न होने का इम्कान थोड़ी होता है

ये दिल के ज़ख़्म छुपा कर जो मुस्कुराते हैं
तो मेरे दोस्त ये आसान थोड़ी होता है

कभी-कभार तो बिदअत भी हो ही जाती है
हर एक लम्हा तिरा ध्यान थोड़ी होता है

वो जिस के पास मोहब्बत भी हो, वफ़ा भी हो
भला वो बे-सर-ओ-सामान थोड़ी होता है

तिरी वफ़ा में कमी कुछ तो आई है कि ये दिल
बिला-जवाज़ परेशान थोड़ी होता है

इधर उधर से दलीलें उठानी पड़ जाएँ
जो इतना कच्चा हो, ईमान थोड़ी होता है