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अव्वल तो मैं रुकता नहीं और जिस से रुकूँ मैं | शाही शायरी
awwal to main rukta nahin aur jis se rukun main

ग़ज़ल

अव्वल तो मैं रुकता नहीं और जिस से रुकूँ मैं

मारूफ़ देहलवी

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अव्वल तो मैं रुकता नहीं और जिस से रुकूँ मैं
ता-हश्र ये मुमकिन नहीं फिर उस से मिलूँ में

ये और सुनाई कि मिरी बात तो सुन ले
जो तेरी कहे आन के उस की न सुनूँ मैं

ये ख़ूब कही देखेंगे कब तक न मिलेगा
इस बात पे गर चाहो तो अब शर्म करूँ मैं

आपस में अगर चर्ख़-ओ-ज़मीं दिनों ये मिल जाएँ
तो भी न कभी तुझ से मिला हूँ न मिलूँ मैं

तब नाम है 'मारूफ़' धरा रह तो सही जब
छाती पे तिरी आठ-पहर मूँग दलूँ मैं