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औरों का था बयान तो मौज सदा रहे | शाही शायरी
auron ka tha bayan to mauj sada rahe

ग़ज़ल

औरों का था बयान तो मौज सदा रहे

अमजद इस्लाम अमजद

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औरों का था बयान तो मौज सदा रहे
ख़ुद उम्र भर असीर-ए-लब-ए-मुद्दआ' रहे

मिस्ल-ए-हबाब बहर-ए-ग़म-ए-हादसात में
हम ज़ेर-ए-बार-ए-मिन्नत-ए-आब-ओ-हवा रहे

हम उस से अपनी बात का माँगें अगर जवाब
लहरों का पेच-ओ-ख़म वो खड़ा देखता रहे

आया तो अपनी आँख भी अपनी न बन सकी
हम सोचते थे उस से कभी सामना रहे

गुलशन में थे तो रौनक़-ए-रंग-ए-चमन बने
जंगल में हम अमानत-ए-बाद-ए-सबा रहे

सुर्ख़ी बने तो ख़ून-ए-शहीदाँ का रंग थे
रौशन हुए तो मशअ'ल-ए-राह-ए-बक़ा रहे

'अमजद' दर-ए-निगार पे दस्तक ही दीजिए
इस बे-कराँ सुकूत में कुछ ग़लग़ला रहे