औरों का था बयान तो मौज सदा रहे
ख़ुद उम्र भर असीर-ए-लब-ए-मुद्दआ' रहे
मिस्ल-ए-हबाब बहर-ए-ग़म-ए-हादसात में
हम ज़ेर-ए-बार-ए-मिन्नत-ए-आब-ओ-हवा रहे
हम उस से अपनी बात का माँगें अगर जवाब
लहरों का पेच-ओ-ख़म वो खड़ा देखता रहे
आया तो अपनी आँख भी अपनी न बन सकी
हम सोचते थे उस से कभी सामना रहे
गुलशन में थे तो रौनक़-ए-रंग-ए-चमन बने
जंगल में हम अमानत-ए-बाद-ए-सबा रहे
सुर्ख़ी बने तो ख़ून-ए-शहीदाँ का रंग थे
रौशन हुए तो मशअ'ल-ए-राह-ए-बक़ा रहे
'अमजद' दर-ए-निगार पे दस्तक ही दीजिए
इस बे-कराँ सुकूत में कुछ ग़लग़ला रहे
ग़ज़ल
औरों का था बयान तो मौज सदा रहे
अमजद इस्लाम अमजद