और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
बात मय-ख़ाने की बाहर गई मय-ख़ाने से
कोई पैमाना लड़ा जब किसी पैमाने से
हम ने समझा कि पुकारा गया मय-ख़ाने से
दो निगाहों का जवानी में है ऐसा मिलना
जैसे दीवाने का मिलना किसी दीवाने से
दिल की दुनिया में सवेरा सा नज़र आता है
हसरतें जाग उठी हैं तिरे आ जाने से
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
शहर आबाद हुए हैं इसी वीराने से
जल्वा-गर आज उन्हें भी सर-ए-मिंबर देखा
जिन को देखा था निकलते हुए मय-ख़ाने से
दर-ओ-दीवार पे क़ब्ज़ा है उदासी 'नज़ीर'
घर मिरा घर न रहा उन के चले जाने से
ग़ज़ल
और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
नज़ीर बनारसी