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और सब कुछ बहाल रक्खा है | शाही शायरी
aur sab kuchh bahaal rakkha hai

ग़ज़ल

और सब कुछ बहाल रक्खा है

विनीत आश्ना

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और सब कुछ बहाल रक्खा है
एक बस इश्क़ टाल रक्खा है

बस तिरा हूँ ये सोच कर बरसों
मैं ने अपना ख़याल रक्खा है

वो बदन जादुई पिटारी है
हर कहीं इक कमाल रक्खा है

ज़िंदगी मौत तय मिरी होगी
उस ने सिक्का उछाल रक्खा है

हाल-ए-दिल क्या उसे बताऊँ मैं
उस ने सब देख-भाल रक्खा है

हिज्र फैला है पूरे कमरे में
पर्स में पर विसाल रक्खा है

इस सलीक़े से 'आशना' टूटो
जैसे ख़ुद को सँभाल रक्खा है