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और कोई भी नहीं अपना सहारा बाक़ी | शाही शायरी
aur koi bhi nahin apna sahaara baqi

ग़ज़ल

और कोई भी नहीं अपना सहारा बाक़ी

मुनव्वर हाशमी

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और कोई भी नहीं अपना सहारा बाक़ी
अब है सीने में फ़क़त दर्द तुम्हारा बाक़ी

क़र्या-ए-जाँ भी है और दावत-ए-दीदार भी है
आँख बाक़ी नहीं लेकिन है नज़ारा बाक़ी

बाक़ी आसार हैं बस क़हर-ए-ख़ुदा के हर-सू
कोई तूफ़ाँ है न कश्ती न किनारा बाक़ी

उस के आने की है मौहूम सी उम्मीद अभी
आसमाँ पर है अभी एक सितारा बाक़ी

दिल-ओ-जाँ भी नहीं दुनिया भी नहीं है अपनी
सोचते हैं कि यहाँ क्या है हमारा बाक़ी

जाने किस सम्त हुए लोग रवाना सारे
एक मैं शहर में हूँ दर्द का मारा बाक़ी