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और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के | शाही शायरी
aur kar lenge wo kya ab hamein ruswa kar ke

ग़ज़ल

और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के

सुलैमान अहमद मानी

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और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के
अब जो आए हैं तो जाएँगे तमाशा कर के

अपनी तख़्लीक़ के इकमाल से सौदा कर के
कौन इस पर्दे में बैठा है तमाशा कर के

इक ज़माना है परेशान मुअम्मा क्या है
तुम तो ग़ाएब हुए कुछ काम अधूरा कर के

तेरे जल्वे की हवस हम को हर इक रंग में है
सू-ए-बुत-ख़ाना चले जाते हैं सज्दा कर के

ताकि सज्दों की तड़प में न कमी आ पाए
और सज्दों के लिए निकले हैं सज्दा कर के

इतनी रंगीन जो दुनिया है तिरी ही तो है
किस तरह कुफ़्र करें हम यहाँ तौबा कर के

जिस ने लुटते हुए देखा है तमद्दुन अपना
उस से कहते हो रहे तुम पे भरोसा कर के

हम से क्या पूछो हो अहवाल-ए-हरम ऐ लोगो
आज के दर्द का जाओ तो मुदावा कर के

'मानी' मय-ख़ाने को मस्जिद से चले कहते हुए
थोड़ी तब्दीली को हो आते हैं सज्दा कर के