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और जीते रहें कि मर जाएँ | शाही शायरी
aur jite rahen ki mar jaen

ग़ज़ल

और जीते रहें कि मर जाएँ

ऐन सलाम

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और जीते रहें कि मर जाएँ
बोल ऐ ज़िंदगी किधर जाएँ

अब तो हर साँस इस चमन में है तंग
सूरत-ए-बू-ए-गुल बिखर जाएँ

ये जनम तो हमें न रास आया
शायद अगले जनम सँवर जाएँ

कोई गुल-गश्त को न आएगा
कहो फूलों से अब बिखर जाएँ

उन की महफ़िल से उठ के आ तो गए
सोचते हैं कि अब किधर जाएँ