और होंगे वो जिन्हें ज़ब्त का दा'वा होगा
हर बुन-ए-मू से यहाँ ज़िक्र किसी का होगा
हुस्न क्यूँ इश्क़ की तश्हीर पे शादाँ है बहुत
इश्क़ रुस्वा है तो क्या हुस्न न रुस्वा होगा
अश्क बन बन के वो आँखों से टपक जाएगी
क्या ख़बर थी कि ये अंजाम-ए-तमन्ना होगा
कहीं रुस्वा न करे हैरत-ए-दीदार मुझे
आज वो जल्वा-ए-मस्तूर हुवैदा होगा
दिल ही आशोब-ए-ज़माना का सबब है 'सीमाब'
दिल न होगा तो कोई हश्र न बरपा होगा

ग़ज़ल
और होंगे वो जिन्हें ज़ब्त का दा'वा होगा
सीमाब बटालवी