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और गुलों का काम नहीं होता कोई | शाही शायरी
aur gulon ka kaam nahin hota koi

ग़ज़ल

और गुलों का काम नहीं होता कोई

ज़ेब ग़ौरी

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और गुलों का काम नहीं होता कोई
ख़ुश्बू का इनआ'म नहीं होता कोई

थक गया एक कहानी सुनते सुनते मैं
क्या इस का अंजाम नहीं होता कोई

सहराओं में ख़ाक उड़ाता फिरता हूँ
इस के अलावा काम नहीं होता कोई

देखो तो क्या ख़ुश रहते हैं दिल वाले
पूछो तो आराम नहीं होता कोई

चट्टानें बस सख़्त हुआ करती हैं 'ज़ेब'
चट्टानों का नाम नहीं होता कोई