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और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है | शाही शायरी
aur ant mein judai baDi karb-nak hai

ग़ज़ल

और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है

नासिर शहज़ाद

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और अंत में जुदाई बड़ी कर्ब-नाक है
तुझ मुझ में यूँ तो रोज़-ए-अज़ल से विफ़ाक़ है

नीचे कहीं बदन में मिटी ख़्वाहिशों के ख़्वाब
ऊपर दराज़ी-ए-ग़म-ए-दौराँ की ख़ाक है

सखियाँ सजीली भोर नयन दर्पना की ओर
आनंद पोर पोर अजब इंहिमाक है

क़िलओं' के ये हिसार नहीं क़ुर्बतों के दयार
इन बुर्जियों के पार हवा-ए-फ़िराक़ है

न्यारे पिया के रूप कहीं गुन कहीं सरूप
मथुरा का बादशाह कहीं भैंसों का चाक है

ये राजधानियाँ यहाँ बे-बस कहानियाँ
कंगन में हाथ है कहीं नथली में नाक है

मीठा मिठास से है वो उजला कपास से
बातों में इश्तिराक मिलन में तपाक है

मिट्टी की सब सिफ़ारतें बंधन बशारतें
सब्ज़ा नदी किनारों मज़ारों पे आक है

हक़-गोई हम-रिकाब दरीदा-बदन के बाब
कर्बल किताब सिद्क़ सियाक़-ओ-सबाक़ है