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अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ मिरी ख़ुशी क्या है | शाही शायरी
ata-e-gham pe bhi KHush hun meri KHushi kya hai

ग़ज़ल

अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ मिरी ख़ुशी क्या है

अनवर साबरी

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अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ मिरी ख़ुशी क्या है
रज़ा तलब जो नहीं है वो बंदगी क्या है

तिरी निगाह की नक़्क़ाशी-ए-हसीं के सिवा
तू ही बता मिरा मफ़हूम-ए-ज़िंदगी क्या है

सितम-शिआर जफ़ा-आश्ना वफ़ा-दुश्मन
ये नंग-ए-अज़्मत-ए-आदम है आदमी क्या है

तिरा तसव्वुर-ए-रंगीं अगर न हो शामिल
बहार-ए-गुलशन-ए-इम्काँ में दिलकशी क्या है

ज़माना आप का कहता है जिस को अक्स-ए-जमील
नज़र उठा के तो देखो ये चाँदनी क्या है

तमाम उम्र क़फ़स में गुज़ार दी हम ने
ख़बर नहीं कि नशेमन की ज़िंदगी क्या है