असीरान-ए-इश्क़-ए-बुताँ और भी हैं
नहीं मैं ही महव-ए-फ़ुग़ाँ और भी हैं
अभी ये जफ़ा का है आग़ाज़ ऐ दिल
वफ़ा के अभी इम्तिहाँ और भी हैं
नहीं इक फ़लक की है मुझ पर इनायत
मिरे हाल पर मेहरबाँ और भी हैं
हमीं से है क्यूँ लाग बर्क़-ए-तपाँ को
चमन में कई आशियाँ और भी हैं
रह-ए-इश्क़ में मिट गए हम तो क्या ग़म
रह-ए-इश्क़ में कारवाँ और भी हैं
कहा जब से है हाल-ए-दिल उन से अपना
वो मुझ से हुए बद-गुमाँ और भी हैं
वतन की तरक़्क़ी पे ख़ुश हो न 'आफ़त'
अभी बेकस-ओ-बे-मकाँ और भी हैं

ग़ज़ल
असीरान-ए-इश्क़-ए-बुताँ और भी हैं
ललन चौधरी