अश्कों में हुस्न-ए-दोस्त दिखाती है चाँदनी
शबनम को चार चाँद लगाती है चाँदनी
अब भी उदास उदास हैं रातें तिरे बग़ैर
अब भी बुझी बुझी नज़र आती है चाँदनी
जिस ने चराग़-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ बुझा दिया
उस हाथ का मज़ाक़ उड़ाती है चाँदनी
तेरे फ़रोग़-ए-हुस्न से ये भी न हो सका
नज़रों के हौसले तो बढ़ाती है चाँदनी
ख़ुश-बू-ए-इंतिज़ार से महकी हुई है रात
'क़ाबिल' न जाने किस को बुलाती है चाँदनी
ग़ज़ल
अश्कों में हुस्न-ए-दोस्त दिखाती है चाँदनी
क़ाबिल अजमेरी