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अश्कों का मिरी आँख से पैग़ाम न आए | शाही शायरी
ashkon ka meri aankh se paigham na aae

ग़ज़ल

अश्कों का मिरी आँख से पैग़ाम न आए

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

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अश्कों का मिरी आँख से पैग़ाम न आए
इल्ज़ाम ये ऐ दोस्त तेरे नाम न आए

क्या कीजिए दरमान-ए-मरीज़-ए-ग़म-ए-उल्फ़त
जब कोई दवा और दुआ काम न आए

फिर मजमा-ए-अग़्यार तह-ए-बाम खड़ा है
उस शोख़ से कह दो कि लब-ए-बाम न आए

अफ़्साना मिरा जे़ब-ए-लब-ए-बुलबुल-ओ-गुल है
डरता हूँ कहीं आप पे इल्ज़ाम न आए

क्या दर्द के मारों पे वो करते हैं इनायत
ऐसा है तो ऐ दिल मुझे आराम न आए

ऐ साक़ी-ए-मय-ख़ाना तिरे दौर में ये क्या
तरसा करें हम और कोई जाम न आए

इक बार उतर जाए जो साक़ी की नज़र से
ता-उम्र 'जमाल' उस की तरफ़ जाम न आए