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अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते | शाही शायरी
ashk pite rahe har jam pe hanste hanste

ग़ज़ल

अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते

सय्यद ज़िया अल्वी

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अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते
रो लिए ख़ूब तिरे नाम पे हँसते हँसते

इस तरह चलते रहें राह-ए-मोहब्बत में सदा
ठोकरें खाएँ हर इक गाम पे हँसते हँसते

क्यूँ ख़ता हो गई दानिस्ता तिरे कूचे में
क्यूँ नज़र पहुँची तिरे बाम पे हँसते हँसते

इश्क़ में जज़्बा-ए-आशिक़ भी अजब होता है
जान देता है तिरे नाम पे हँसते हँसते

उलझनें अपनी मुसीबत की बढ़ा लेती है
ज़िंदगी गर्दिश-ए-अय्याम पे हँसते हँसते

काश होते तो दिखाते उन्हें आहों का असर
सो गए जो दिल-ए-नाकाम पे हँसते हँसते

ऐ 'ज़िया' जाओ सितारों में सहर को ढूँडो
रात होने लगी अब शाम पे हँसते हँसते