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अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है | शाही शायरी
ashk mizhgan-e-tar ki punji hai

ग़ज़ल

अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है

इंशा अल्लाह ख़ान

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अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है
ये समर उस शजर की पूँजी है

आह को मत हक़ीर जान यही
दूदमान-ए-असर की पूँजी है

जो घड़ी याद में तिरी कट जाए
वो ही आठों पहर की पूँजी है

जल्वा-ए-यार है अज़ीज़ बहुत
यही अहल-ए-नज़र की पूँजी है

जल्द अच्छा हो ये तआ'लल्लाह
यही 'इंशा' के घर की पूँजी है

तेरी बख़्शी हुइ ख़ुदावंदा
मेरी ये उम्र भर के पूँजी है

मैं तिरे सदक़े बस यही मेरे
दिल-ओ-जान-ओ-जिगर की पूँजी है