EN اردو
अश्क बहाओ आह भरो फ़रियाद करो | शाही शायरी
ashk bahao aah bharo fariyaad karo

ग़ज़ल

अश्क बहाओ आह भरो फ़रियाद करो

शाद अमृतसरी

;

अश्क बहाओ आह भरो फ़रियाद करो
कुछ तो क़फ़स में शिकवा-ए-इस्तिब्दाद करो

हर-सू मर्ग-आसार ख़मोशी छाई है
दर्द के मारो शोरिश-ए-हश्र ईजाद करो

सहरा सहरा ख़ाक उड़ाने से हासिल
क़र्या क़र्या क़स्र-ए-सितम बरबाद करो

अर्ज़-ए-तमन्ना पर अब क़दग़न क्या मा'नी
अपने वा'दे अपनी क़स्में याद करो

आओ आवारा-ओ-गुरेज़ाँ उम्मीदो
घर की वीरानी को फिर आबाद करो

शौक़-ए-तलब ही अव्वल-ओ-आख़िर मंज़िल है
क़ैस बनो या पैरवी-ए-फ़रहाद करो

औरों को तर्ग़ीब-ए-तरब देने वालो
हम ऐसे दरवेशों को भी शाद करो