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अश्क आँखों में डर से ला न सके | शाही शायरी
ashk aankhon mein Dar se la na sake

ग़ज़ल

अश्क आँखों में डर से ला न सके

नसीम देहलवी

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अश्क आँखों में डर से ला न सके
दिल की भड़की हुई बुझा न सके

न हिली जब ज़बाँ नज़ाकत से
रह गए देख कर बुला न सके

थीं जो उस में हया की कुछ बातें
शिकवा मेरा वो लब पे ला न सके

क्या हुए तेरे हौसले ऐ अश्क
हर्फ़-ए-तक़दीर को मिटा न सके

था ये ख़तरा कहीं पसंद न हों
गालियाँ भी मुझे सुना न सके

गो बहुत पास-ए-ग़ैर था लेकिन
आँख हम से भी वो चुरा न सके

पाँव चूमा किए हिना की तरह
जब कोई और रंग ला न सके

ख़ामुशी थी ब-शक्ल-ए-ज़ख़्म मुझे
लब तक अपने सवाल आ न सके

न मली उस ने पाँव में मेहंदी
रंग अपना अदू जमा न सके

इज़्तिराब-ए-क़ज़ा हुआ ये 'नसीम'
कि गले भी उसे लगा न सके