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अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं | शाही शायरी
ashk aa aa ke meri aankhon mein tham jate hain

ग़ज़ल

अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं
जब वो कहते हैं अभी तो नहीं हम जाते हैं

सिक्का अपना नहीं जमता है तुम्हारे दिल पर
नक़्श अग़्यार के किस तौर से जम जाते हैं

कोई दम का ही दमामा है नहीं दम हमदम
पास-ए-अन्फ़ास नहीं दम में ये दम जाते हैं

मर्ग-ए-उश्शाक़ नहीं ज़िंदा-ए-जावेद हुए
यार से होने हम-आग़ोश-ओ-बहम जाते हैं

उस जफ़ा-केश को है आज तलाश-ए-उश्शाक़
शौक़-ए-दीदार में मुश्ताक़-ए-सितम जाते हैं

हिन्द के ख़ाक-बसर 'साक़ी' हैं अहल-ए-बातिन
काबा-ए-दिल में पए-तौफ़-ए-हरम जाते हैं