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अशआ'र में जो मेरे किरन जुस्तुजू की है | शाही शायरी
ashaar mein jo mere kiran justuju ki hai

ग़ज़ल

अशआ'र में जो मेरे किरन जुस्तुजू की है

अरशद अब्दुल हमीद

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अशआ'र में जो मेरे किरन जुस्तुजू की है
मीरास ये भी तेरे ही मोहर-ए-नुमू की है

नज़रों में अब भी हैं तिरे लहजे के माह-ओ-नज्म
अब भी समाअ'तों में चमक गुफ़्तुगू की है

तेरी पुकार है कि ये बूँदें हैं ओस की
आवाज़-ए-नग़्मा है कि सदा आब-जू की है

दीवार-ए-ज़ब्त टूट भी सकती है कुछ करूँ
फ़व्वारा छूट जाए वो हालत लहू की है

यूँ फूल तो बरसते न थे कू-ए-यार में
ये हम गुज़रते हैं कि सवारी अदू की है

प्यासों को इंतिख़ाब की जुरअत न कोई हक़
क्या पूछिए हुज़ूर ये किस के सुबू की है

'अरशद' वो सामने ही तो है शाख़-ए-दस्तरस
दूरी बस एक जस्त-ए-बुलंद-आरज़ू की है