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असर न हो तो उसी नुत्क़-ए-बे-असर से कह | शाही शायरी
asar na ho to usi nutq-e-be-asar se kah

ग़ज़ल

असर न हो तो उसी नुत्क़-ए-बे-असर से कह

शानुल हक़ हक़्क़ी

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असर न हो तो उसी नुत्क़-ए-बे-असर से कह
छुपा न दर्द-ए-मोहब्बत जहान भर से कह

जो कह चुका है तो अंदाज़-ए-ताज़ा-तर से कह
ख़बर की बात है इक गोश-ए-बे-ख़बर से कह

चमन चमन से उखड़ कर रहेगा पा-ए-ख़िज़ाँ
रविश रविश को जता दे शजर शजर से कह

बयान-ए-शौक़ नहीं क़ील-ओ-क़ाल का मोहताज
कभी फ़ुग़ाँ में अदा कर कभी नज़र से कह

वज़ीर ओ मीर के क्या गोश-ए-बे-असर से ख़िताब
मुराद दिल की गदायान-ए-रहगुज़र से कह

शबाब-ए-तिश्ना की ख़ूँ-बार नोशियों को न भूल
मिरे फ़साना-ए-रंगीं को पेशतर से कह

सफ़र से शर्त-ए-हयात और जिहत है शर्त-ए-सफ़र
पुकार कर ये रफ़ीक़ान-ए-हम-सफ़र से कह