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असर के पीछे दिल-ए-हज़ीं ने निशान छोड़ा न फिर कहीं का | शाही शायरी
asar ke pichhe dil-e-hazin ne nishan chhoDa na phir kahin ka

ग़ज़ल

असर के पीछे दिल-ए-हज़ीं ने निशान छोड़ा न फिर कहीं का

शिबली नोमानी

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असर के पीछे दिल-ए-हज़ीं ने निशान छोड़ा न फिर कहीं का
गए हैं नाले जो सू-ए-गर्दूं तो अश्क ने रुख़ किया ज़मीं का

भली थी तक़दीर या बुरी थी ये राज़ किस तरह से अयाँ हो
बुतों को सज्दे किए हैं इतने कि मिट गया सब लिखा जबीं का

वही लड़कपन की शोख़ियाँ हैं वो अगली ही सही शरारतें हैं
सियाने होंगे तो हाँ भी होगी अभी तो सन है नहीं नहीं का

ये नज़्म-ए-आईं ये तर्ज़-ए-बंदिश सुख़नवरी है फ़ुसूँ-गरी है
कि रेख़्ता में भी तेरे 'शिबली' मज़ा है तर्ज़-ए-'अली-हज़ीं' का