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असर कर के आह-ए-रसा फिर गई | शाही शायरी
asar kar ke aah-e-rasa phir gai

ग़ज़ल

असर कर के आह-ए-रसा फिर गई

मुनीर शिकोहाबादी

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असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
हुआ साफ़ मतला हवा फिर गई

सवारी तिरी आ के क्या फिर गई
इधर को उधर की हवा फिर गई

मिरे सर से तेग़-ए-जफ़ा फिर गई
कई बार आई क़ज़ा फिर गई

गया देव-ए-ग़म जल्वा-ए-यार से
परी-ज़ाद आया बला फिर गई

ये जाँ-बख़्श उस जाँ-सताँ की है चाल
वो आया जो फिर कर क़ज़ा फिर गई

घड़ी दो घड़ी का है तेरा मरीज़
तबीब उठ गए हर दवा फिर गई

तू आता नहीं इस गली में 'मुनीर'
तबीअत तिरी हम से क्या फिर गई