अर्श ओ कुर्सी की ख़बर लाए हैं लाने वाले
एक मूसा ही न थे तूर के जाने वाले
तूर को तुम ने जलाया तो बड़ी बात न की
आग पानी में लगाते हैं लगाने वाले
मेरे मरक़द को भी आ कर कभी ठुकरा जाना
अरे ओ फ़ित्ना-ए-महशर के जगाने वाले
एक आलम तिरे आशिक़ ने किया ख़ाल-ए-सियाह
दो ही नाले किए थे तूर जलाने वाले
कब तलक अपने करिश्मे हमें दिखलाओगे
ऐ मियाँ रोज़ नए तर्ज़ दिखाने वाले
मेरी तक़दीर जो पलटे तो तअज्जुब क्या है
सुनते हैं बिगड़ी बनाते हैं बनाने वाले
तुम जो आँखों में मिरी आए तो एहसान किया
आँखें क्या दिल में समाते हैं समाने वाले
लाख हो माना-ए-फ़रियाद मगर क्या होगा
अर्श को सर पे उठा लेंगे उठाने वाले
अपनी क़िस्मत नहीं ऐसी कि हो दीदार 'अंजुम'
मुंतज़िर जिन के हैं कब आएँ वो आने वाले
ग़ज़ल
अर्श ओ कुर्सी की ख़बर लाए हैं लाने वाले
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम