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अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे | शाही शायरी
arsa-e-mah-o-sal se guzre

ग़ज़ल

अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे

आदिल फ़रीदी

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अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे
रात राह-ए-विसाल से गुज़रे

तुम कि अहद-ए-वफ़ा निभा के 'मीर'
कितने रंज-ओ-मलाल से गुज़रे

आ शब-ए-वस्ल मुख़्तसर है बहुत
कौन शर्त-ए-सवाल से गुज़रे

क्या बताएँ कि तेरे कूचे से
किस हुनर किस कमाल से गुज़रे

कौन था वो कि जिस की चाहत में
ख़्वाब बन कर ख़याल से गुज़रे

दश्त-ए-वहशत से तेरे दीवाने
कैसे जाह-ओ-जलाल से गुज़रे

गर्दिश-ए-वक़्त थम गई 'आदिल'
तुम जो शहर-ए-मिसाल से गुज़रे