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अर्सा-ए-हर-दो-जहाँ आलम-ए-तन्हाई है | शाही शायरी
arsa-e-har-do-jahan aalam-e-tanhai hai

ग़ज़ल

अर्सा-ए-हर-दो-जहाँ आलम-ए-तन्हाई है

कैफ़ी हैदराबादी

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अर्सा-ए-हर-दो-जहाँ आलम-ए-तन्हाई है
कि जिधर देखिए तू है तिरी यकताई है

बे-नियाज़ी है ख़ुद-आराई है ख़ुद-राई है
आप की जाने बला कौन तमन्नाई है

पाते हैं लुत्फ़-ए-हयात-ए-अबदी तेरे शहीद
ज़ब्ह करना तिरा एजाज़-ए-मसीहाई है

तुम को 'कैफ़ी' से तअल्लुक़ तो न होगा लेकिन
जान-पहचान मुलाक़ात शनासाई है