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अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके | शाही शायरी
araq jab us pari ke chehra-e-pur-nur se Tapke

ग़ज़ल

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

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अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके
ख़जिल हो गुल से शबनम जूँ लहू नासूर से टपके

मिरी आँखों से ख़ूनीं अश्क यूँ गिरते हैं पलकों पर
लहू सूली के ऊपर जूँ सर-ए-मंसूर से टपके

अगर कैफ़-ए-सुख़न मेरा निहाल-ए-ताक को पहुँचे
सुराही शाख़ बन जावे शराब अंगूर से टपके

अगर उस ज़ुल्फ़-मुश्क-आमेज़ से चुन्नी में बाल आवे
अजब मैं इत्र-ओ-अंबर कासा-ए-नग़फ़ूर से टपके

करूँ फ़रियाद रो रो यार को जब याद कर 'आजिज़'
दम इस्राफ़ील का लोहू हो बाँग-ए-सूर से टपके