EN اردو
अक़्ल ने लाख अँधेरों में छुपाया है तुझे | शाही शायरी
aql ne lakh andheron mein chhupaya hai tujhe

ग़ज़ल

अक़्ल ने लाख अँधेरों में छुपाया है तुझे

नूर बिजनौरी

;

अक़्ल ने लाख अँधेरों में छुपाया है तुझे
मेरा विज्दान मगर चूम के आया है तुझे

वो तिलिस्मात नज़र आए कि देखे न सुने
जब भी आँखों के चराग़ों में जलाया है तुझे

रात भीगी है तो छेड़ा है तिरे दर्द का साज़
चाँद निकला है तो चुपके से जगाया है तुझे

मैं तो क्या वक़्त भी अब छू न सकेगा तुझ को
इश्क़ ने मसनद-ए-यज़्दाँ पे बिठाया है तुझे

वो तिरा हुस्न कि ख़ीरा थी ज़माने की नज़र
ये मिरा फ़न कि तिरा अक्स दिखाया है तुझे

आज भी ज़ेहन में बिजली सी चमक उठती है
कौन भोला है तुझे किस ने भुलाया है तुझे

जगमगाती है मिरी रूह तो मैं सोचता हूँ
मैं ने खोया है मिरी जान कि पाया है तुझे