अक़्ल दाख़िल हो गई है वहम के मैदान में
आसमाँ बानी भी है अब हल्क़ा-ए-इम्कान में
अक़्ल-ओ-दिल का सामना था दीदा-ए-हैरान में
मैं खड़ा साहिल पे था वो हल्क़ा-ए-तूफ़ान में
ख़ुल्द से दुनिया में आते दम कहाँ मा'लूम था
रंज-ओ-ग़म सो बाँध रक्खे हैं मिरे सामान में
धुँद छट जाएगी वाइ'ज़ चार दिन में देखना
डूब जाएँगे तिरे क़िस्से मिरे एलान में
कुफ़्र और इल्हाद की ना-ख़ूबियोंं की भीड़ में
कोई ख़ूबी भी तो होगी चीन में जापान में
मैं हुजूम-ए-ग़म में मरता था न जीता था 'सईद'
वो नज़र आए तो चंदे जान आई जान में

ग़ज़ल
अक़्ल दाख़िल हो गई है वहम के मैदान में
सईद अहमद अख़्तर