EN اردو
अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ | शाही शायरी
apni yakjai mein bhi KHud se juda rahta hun

ग़ज़ल

अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ

साबिर ज़फ़र

;

अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ
घर में बिखरी हुई चीज़ों की तरह रहता हूँ

सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर
दिन निकलता है तो बिस्तर में पड़ा रहता हूँ

दीन ओ दुनिया से नहीं है कोई झगड़ा मेरा
यानी मैं इन से अलग अपनी जगह रहता हूँ

ख़्वाहिश-ए-दाद नहीं और कोई फ़रियाद नहीं
एक सहरा है जहाँ नग़्मा-सरा रहता हूँ