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अपनी वो बे-सबात हस्ती है | शाही शायरी
apni wo be-sabaat hasti hai

ग़ज़ल

अपनी वो बे-सबात हस्ती है

जोशिश अज़ीमाबादी

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अपनी वो बे-सबात हस्ती है
कि सदा नीस्ती ही हँसती है

नाम सुनते हो जिस का वीराना
वही सौदाइयों की बस्ती है

शम्अ से हाथ खींच ऐ गुल-गीर
इतनी भी क्या दराज़-दस्ती है

चश्म-ए-वहदत से गर कोई देखे
बुत-परस्ती भी हक़-परस्ती है

अपने अब्र-ए-मिज़ा से ऐ 'जोशिश'
जा-ए-आब आग ही बरसती है