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अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में | शाही शायरी
apni to guzri hai akasr apni hi man-mani mein

ग़ज़ल

अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में

विलास पंडित मुसाफ़िर

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अपनी तो गुज़री है अक्सर अपनी ही मन-मानी में
लेकिन अच्छे काम भी हम ने कर डाले नादानी में

हम ठहरे आवारा पंछी सैर गगन की करते हैं
जान के हम को क्या करना है कौन है कितने पानी में

रूह को उस की राह का पत्थर बनना ही मंज़ूर न था
बाज़ी हम ने ही जीती है अपनी इस क़ुर्बानी में

यार नई कुछ बात अगर हो हम भी सज्दा कर लेंगे
अक्सर एक ही बात सुनी है सब संतों की बानी में

मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में

मौक़े तो हम तक भी आए ख़ूब कमा खा लेते हम
लेकिन एक ज़मीर था भीतर अल्लाह की निगरानी में