EN اردو
अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं | शाही शायरी
apni takmil kar raha hun main

ग़ज़ल

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

आरिफ़ इमाम

;

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं
उस गली में बिखर रहा हूँ मैं

जितना जितना झुका रहा हूँ सर
उतना उतना उभर रहा हूँ मैं

इक सहीफ़ा हूँ आसमानों का
और ज़मीं पर उतर रहा हूँ मैं

गर्दिश-ए-वक़्त रोकनी है मुझे
इस लिए रक़्स कर रहा हूँ मैं

क़ैस के भी क़दम नहीं हैं जहाँ
उस जगह से गुज़र रहा हूँ मैं

पूछ लो मुझ से आसमान के राज़
कुछ दिनों तक उधर रहा हूँ मैं