EN اردو
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं | शाही शायरी
apni surat ko badalna hi nahin chahta main

ग़ज़ल

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं

सरफ़राज़ ख़ालिद

;

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
अब किसी साँचे में ढलना ही नहीं चाहता मैं

तुम अगर मुझ से मोहब्बत नहीं करते न सही
ऐसी बातों से बहलना ही नहीं चाहता मैं

या मिरे पाँव में क़ुव्वत ही नहीं है इतनी
या तिरी राह पे चलना ही नहीं चाहता मैं

सुनता रहता हूँ सदाएँ तिरी दस्तक की मगर
अपने कमरे से निकलना ही नहीं चाहता मैं

ये भी सच है कि सँभलना है ज़रूरी मेरा
ये भी सच है कि सँभलना ही नहीं चाहता मैं