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अपनी रूदाद यूँ बयाँ हो जाए | शाही शायरी
apni rudad yun bayan ho jae

ग़ज़ल

अपनी रूदाद यूँ बयाँ हो जाए

नदीम फ़ाज़ली

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अपनी रूदाद यूँ बयाँ हो जाए
इक पतिंगा जले धुआँ हो जाए

ख़ाक मिल जाए ख़ाक में मेरी
या सितारों में ज़ौ-फ़िशाँ हो जाए

उस की सूरत पे तब्सिरा कैसा
आइना जिस से बद-गुमाँ हो जाए

ये जहाँ ख़्वाब है मगर ऐसा
आँख मूँदें तो राएगाँ हो जाए

अपनी रुस्वाइयाँ मुझे मंज़ूर
तू अगर मेरा राज़-दाँ हो जाए

मेरी बे-ताबियाँ बयान हुईं
अब तिरे ज़ब्त का बयाँ हो जाए