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अपनी रूदाद कहूँ या ग़म-ए-दुनिया लिक्खूँ | शाही शायरी
apni rudad kahun ya gham-e-duniya likkhun

ग़ज़ल

अपनी रूदाद कहूँ या ग़म-ए-दुनिया लिक्खूँ

शरर फ़तेह पुरी

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अपनी रूदाद कहूँ या ग़म-ए-दुनिया लिक्खूँ
कौन सी बात कहूँ कौन सा क़िस्सा लिक्खूँ

बाब-ए-तहरीर में है लौह-ओ-क़लम पर ताज़ीर
बर्ग-ए-सादा ही पे अब हर्फ़-ए-तमन्ना लिक्खूँ

शाम तो शाम थी अब सुब्ह का मंज़र देखो
किस की मैं हज्व कहूँ किस का क़सीदा लिक्खूँ

उस सितम पेशा का ए'जाज़-ए-सितम ही होगा
दस्त-ए-क़ातिल को अगर दस्त-ए-मसीहा लिक्खूँ

इतनी बे-रब्त है तफ़सील-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त 'शरर'
ख़ुद समझने के लिए इस का ख़ुलासा लिक्खूँ