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अपनी मसर्रतों के नए बाब ढूँडने | शाही शायरी
apni masarraton ke nae bab DhunDne

ग़ज़ल

अपनी मसर्रतों के नए बाब ढूँडने

मैराज नक़वी

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अपनी मसर्रतों के नए बाब ढूँडने
आँखें निकल पड़ी हैं नए ख़्वाब ढूँडने

वो देखो आसमान में बादल की कश्तियाँ
जाती हैं कोई पैकर-ए-महताब ढूँडने

माज़ी की सम्त जाते हैं हम अपने हाल से
राहों में खो गया है जो अस्बाब ढूँडने

हैरत है इन दिनों तो तुम्हारे ख़याल भी
आते हैं मेरी आँखों में सैलाब ढूँडने