EN اردو
अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें | शाही शायरी
apni khoi hui tauqir numayan kar den

ग़ज़ल

अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें

सईदा जहाँ मख़्फ़ी

;

अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें
क्यूँ न तारीकी-ए-महफ़िल को फ़रोज़ाँ कर दें

नूर-ए-सुल्ताना-ओ-रज़िया की हमिय्यत की क़सम
गुम्बद-ए-चर्ख़ को इक बार तो लर्ज़ां कर दें

फ़ातिमा-ज़हरा के दिल-दोज़ तहम्मुल की क़सम
अज़्मत-ए-रफ़्ता से दुनिया में चराग़ाँ कर दें

जब्र और ज़ुल्म की बुनियाद को ढह कर बहनो
आओ अब हिम्मत-ए-मर्दाना को हैराँ कर दें

तफ़रक़े सारे ये आपस के मिटा डालें हम
आओ अब जुरअत-ए-निसवाँ को नुमायाँ कर दें

हिन्द वीरान हुआ हम को ही 'मख़फ़ी' रख कर
उठो इस उजड़े गुलिस्ताँ में बहाराँ कर दें